सिवनी भाजपा में मंडल अध्यक्षों की नियुक्तियों पर विवाद: कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ा

सिवनी जिले की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में मंडल अध्यक्षों के निर्वाचन और नियुक्तियों को लेकर गहराता विवाद पार्टी के भीतर असंतोष की स्थिति को उजागर कर रहा है। जिले के चारों विधानसभा क्षेत्रों, खासकर लखनादौन, घंसौर, और केदारपुर में इन नियुक्तियों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी

लखनादौन विधानसभा के अंतर्गत लखनादौन मंडल में स्थिति सबसे ज्यादा तनावपूर्ण नजर आ रही है। यहां आरोप है कि कांग्रेस से आए कुछ नए लोगों ने पार्टी में प्रवेश के बाद जिला भाजपा पदाधिकारियों के साथ करीबी संबंध बनाकर न केवल महत्वपूर्ण पद हासिल किए बल्कि मंडल अध्यक्ष के रूप में अपना वर्चस्व भी स्थापित कर लिया। इससे पार्टी के मूल कार्यकर्ता, जिन्होंने पिछले एक दशक से पार्टी के लिए निष्ठा और समर्पण से काम किया है, खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

चुनाव प्रक्रिया पर सवाल

लखनादौन, घंसौर, आदेगांव और केदारपुर मंडलों में निर्वाचन प्रक्रिया को लेकर भी विवाद सामने आया है। कई स्थानों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी और बाहरी हस्तक्षेप के चलते कार्यकर्ताओं की राय को नजरअंदाज किया गया।

पार्टी में बढ़ता असंतोष

पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी में उनके लंबे समय के योगदान को नजरअंदाज किया जा रहा है, जिससे उनका मनोबल गिरा है। एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमने पार्टी को अपनी मेहनत और समय देकर इस मुकाम तक पहुंचाया, लेकिन अब हमारी अनदेखी हो रही है। नए लोग जो कल तक कांग्रेस में थे, आज हमारी मेहनत का फल ले रहे हैं।”

आगामी चुनावों पर प्रभाव

मंडल स्तर पर जारी इस असंतोष का प्रभाव पार्टी की चुनावी रणनीति और परिणामों पर भी पड़ सकता है। यदि समय रहते इस विवाद को नहीं सुलझाया गया, तो यह पार्टी की संगठनात्मक एकता को कमजोर कर सकता है।

पार्टी नेतृत्व से समाधान की उम्मीद

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा का जिला और प्रदेश नेतृत्व इस मामले को किस तरह से संभालता है। पुराने कार्यकर्ताओं को विश्वास में लेना और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से संतुलन बनाना पार्टी के लिए आवश्यक होगा।

निष्कर्ष

सिवनी भाजपा में मंडल अध्यक्षों की नियुक्तियों पर बढ़ता विरोध न केवल पार्टी के भीतर दरारें पैदा कर रहा है बल्कि आगामी चुनावों में संगठन की क्षमता को भी चुनौती दे सकता है। समय पर हस्तक्षेप और उचित समाधान ही पार्टी को इस संकट से बाहर निकाल सकता है।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *