एक दिन पहले बन जाता है दूसरे दिन का भोजन क्यों

परंपराओं को निभाते हैं घर परिवार के सदस्य

ठंडा खाना छोटी माता और मौसमी बीमारियों को रोकने बड़ा महत्व

नैनपुर – श्री कृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व सिंधी समाज के द्वारा थदड़ी का पर्व मनाया जाता है, इसमें सिंधी समाज के घरों में चूल्हे नहीं जले। बताया गया कि पुरानी परंपराएं चली आ रही हैं, जिसमें एक दिन चूल्हे को आराम दिया जाता है और थदड़ी माता की पूजा की जाती है। इसके अंदर भी एक मान्यता है, कि सावन के बाद मौसम में बदलाव होता है जिससे वायु परिवर्तन के बाद मनुष्य को छोटी माता एवं अन्य मौसमी बीमारियों से रोकने के लिए इस पर्व का बड़ा महत्व माना जाता है।

मौसम के अनुकूल शरीर को ठंडे भोजन की आवश्यकता होती है, इस दिन हम ठंडा खाना खाते हैं और इससे दिमाग शांत रहता है, व्यक्ति के दिमाग का आवेश कम होता है, यह सेहत के लिए भी फलदायी है। शनिवार को सिंधी समाज के परिवारों ने रात्रि में दूसरे दिन के लिए भी खाना तैयार कर लिया गया। जिसमें पारंपरिक रूप से कोकी, डोडा, पुड़ी, मीठी रोटी, भजिया, दहीबड़ा, थेपले, चने, अंकुरित सलाद आदि तैयार कर लिए गए थे और चूल्हे को जल छिड़क कर रात्रि में बंद कर दिया गया था।

दूसरे दिन रविवार को सामाजिक महिलाओं ने सामाजिक पुरोहित के घर शीतला माता को बनाए व्यंजनों का भोग लगाया गया। पारंपरिक रूप से थदड़ी माता की पूजा की गई। पूजा में कलश का विशेष महत्व है एवं उस दिन परिवार के सदस्यों ने ठंडा खाना खाया जो कि सामाजिक रूप से परंपराओं को निर्वहन करते हुए लंबे समय से चला आ रहा है।

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