मंडला – . वनों से हम अपने जीवन में बहुत कुछ ले रहे हैं, जैसे जलाउ लकड़ी, इमारती लकड़ी, वनोषधी, हर्रा बहेरा, चार, चिरौंजी, महुआ, तेंदू, तेदूपत्ता, गाद, भाजी, आवला, चकोंड़ा भाजी, चेंच भाजी, ब्रम्हरकस आदि। हमने वन से लिया है लेकिन इसे दिया कुछ नहीं और इसका दोहन लगातार कर रहे हैं। यदि इसी तरह चलता रहा तो एक दिन वन सम्पदा समाप्त हो जाएगी और आने वाली पीढ़ी सिर्फ किताबों में इससे पढ़ेगी। उसी के संरक्षण और संवर्धन के लिए परम्परागत वन भाजी महोत्सव मनाया गया।

मंडला के संकुल बिछिया में ग्रामीण विकास एवं महिला उत्थान संस्थान द्वारा ग्राम पंचायत राता में परंपरागत वन भाजी महोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीमति सुकनो बाई उईके जनपद पंचायत अध्यक्ष, वन विभाग के अधिकारी, ग्राम रोजगार सहायक, मोबलाईजर एवं समाज सेवी ठाकुर उपस्थित रहे।

बताया गया कि परम्परागत वन भाजी कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं एवं अन्य महिलाओं के द्वारा अपने घरों से विभिन्न प्रकार की जंगल में मिलने वाली भाजी का व्यंजन एवं रोटी बनाकर कार्यस्थल पर लाई।

सर्वप्रथम वन देवी को याद करते हुये वन देवी का पूजन अर्चन किया गया एवं संकल्प लिया गया कि वन सम्पदा का संरक्षण एवं संवर्धन करेंगे। कार्यक्रम में जनपद पंचायत अध्यक्ष ने बताया कि ऐसा कार्यक्रम हमने पहली बार देखा है वास्तव में हम अपनी परम्परा को धीरे धीरे भूलने लगे हैं इसे बचा कर रखना है।

चकोड़ भाजी सिर्फ भाजी ही नहीं यह पौष्टिक भी होती है इसमें आयरन अधिक होता है, इसको खाने से ताकत आती है। इसके बीज से दवाईयॉं बनाने के साथ अन्य चीजों में इसका उपयोग किया जाता है। कार्यक्रम में उन्होंने कहां कि समूह की दीदिया आय को बढ़ावा देने के लिये छोटे छोटे लघु उद्योग से जुड़े। कार्यक्रम में संस्था से सुभाष बंशकार, राजेन्द्र कुमार सिंगौर, सतेन्द्र बंदेवार उपस्थित रहे।।

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