मंडला
विश्व की सबसे बड़ी जैव विविधता की प्रयोगशाला राष्ट्रीय उद्यान कान्हा नेशनल पार्क है। जहां हर प्रकार के जीव जंतु, वनस्पति वनों से आच्छादित है। दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु एवं वन्य प्राणी की उपलब्धता है। राष्ट्रीय उद्यान कान्हा के नाम से मंडला जिले को पूरी दुनिया में जाना जाता है। कान्हा नेशनल पार्क भारत के मध्यप्रदेश में मंडला और बालाघाट जिले की सीमा में स्थित है। कान्हा नेशनल पार्क मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। इस पार्क में रॉयल बंगाल टाइगर तेंदुए, भालू, बारहसिंघा, चीतल और जंगली कुत्ते की महत्वपूर्ण आबादी है। वैसे तो कान्हा की पहचान विश्व स्तर पर है। वहीं कान्हा को बाघो की धरती भी कहां जाता है। पूरी दुनिया से लोग कान्हा नेशनल पार्क सिर्फ बाघों के दीदार के लिए ही आते है। कान्हा टाइगर रिर्जव में प्रतिवर्ष पर्यटकों की भी संख्या में भी इजाफा हो रहा है।
जानकारी अनुसार बाघों के संरक्षण और लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। जिससे लोगों में जागरूकता आए और जंगलों, वनो को सुरक्षित रखने में अपना योगदान दे, जिससे वन्यप्राणियों को विलुप्त होने से बचाया जा सका। वर्ष 2022 के अपडेटेड आंडकों के अनुसार मप्र को टाइगर स्टेट का दर्जा मिल चुका है। इस टाइगर स्टेट का खिताब दिलाने में आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला के कान्हा नेशनल पार्क की अहम भूमिका रही। इस खिताब से नवाजे जाने के बाद हर जगह खुशी का वातावरण है। पूरा मप्र जहां इस पर गर्व महसूस कर रहा है। मप्र में टाइगर बढऩे के साथ ही मंडला जिले में स्थित कान्हा नेशनल पार्क ने भी टाइगरों ने शतक लगा दिया है। अब दो साल बाद फिर अपडेटेड आंकड़े जारी किये जाएगे। जिसमें भी बाघों में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। फिलहाल वर्ष 2022 के अपडेटेड आंकड़ों के अनुसार कान्हा टाइगर रिर्जव में बाघों की संख्या करीब 105 पहुंच गई है।
बाघों में 50 प्रतिशत की हुई वृद्धि
बताया गया कि विगत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर एनटीसीए द्वारा टाइगर स्टेटस 2022 के अपडेटेड आंकड़े जारी किए थे। जिसके अनुसार देश भर में 3682 बाघ हैं। मप्र पुन: 785 बाघों के साथ टाइगर स्टेट का दर्जा पाने में कामयाबी मिली थी। वहीं मंडला जिले के कान्हा टाइगर रिजर्व में पिछले चार वर्षों में टाइगर की संख्या में वृद्धि हुई है। कान्हा में जहां 2018 में 83 टाइगर थे वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 105 वयस्क टाइगर की हो गई हैं। वहीं देश भर में वर्ष 2018 में बाघों की संख्या 2967 थी, जिसके अंतर्गत 715 बाघों का इजाफा हुआ है। मध्यप्रदेश की बात करें तो इन 4 वर्षों के दौरान प्रदेश में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विगत वर्ष जारी रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में 785 बाघ हैं, जो 2018 के मुकाबले 259 अधिक यानी करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
कान्हा में टाइगर शतक पार
टाइगर संरक्षण के क्षेत्र में मंडला जिले के कान्हा टाइगर रिजर्व का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1973 में शुरू हुए प्रोजेक्ट टाइगर के प्रारम्भिक 9 पार्कों में कान्हा नेशनल पार्क भी इसमें शामिल था। एक अनुमान के मुताबिक प्रोजेक्ट टाइगर के शुरुआती दौर में कान्हा में 35 से 40 बाघ थे। वर्ष 2018 में हुई गणना में टाइगर की संख्या बढ़ कर 83 हो गई थी और विगत वर्ष एनटीसीए द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार यहां करीब 105 वयस्क टाइगर हैं। कान्हा टाइगर रिर्जव में बाघों ने शतक पार कर लिया है जो अब धीरे-धीरे इनकी संख्या में इजाफा होता जाएगा। इस बाघों की धरती कान्हा नेशनल पार्क में पर्यटक भी इन्हीं बाघों के दीदार के लिए पहुंचते है।
50 वर्षो में हुए बदलाव
कान्हा में इन 50 वर्षों में काफी बदलाव हुए हैं। इस दौरान कान्हा के अंदर आने वाले सभी गांव पार्क के बाहर स्थानांतरित किये गए। इससे वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास का अच्छा विस्तार हुआ। इसके कारण शाकाहारी और मांसाहारी प्राणियों की आबादी में वृद्धि हुई है। बाघ संरक्षण परियोजना का फायदा बारासिंघा जैसी अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों को भी मिला है। जिससे उनका भी कुनबा में लगातार वृद्धि हो रही है। कान्हा नेशनल पार्क के कुछ वन्य प्राणियों का कुनवा बढ़ाने के लिए योजना भी चलाई जा रही है। जिससे उनकी प्रजाति को विलुप्त होने से बचाया जा सके।
हर चार वर्ष में होती है अखिल भारतीय स्तर पर गणना
बताया गया कि 2010 और 2014 में अखिल भारतीय गणना की गई थी। इस गणना में कान्हा नेशनल पार्क में बाघों की संख्या में वर्ष 2010 में जहां 60 थी। वहीं 2014 में बाघों की संख्या 80 बताई गई। वर्ष 2018 में पुन: अखिल भारतीय स्तर पर बाघों की गणना की गई, जिसमें 83 टाइगर कान्हा में थे। टाइगर स्टेटस 2022 के अपडेटेड आंकड़े जारी होने के बाद अब कान्हा में फिलहाल 105 वयस्क टाइगर बताए जा रहे है।
कान्हा पार्क में बाघों की सुरक्षा के है इंतजाम
पार्क में बाघ के लिए किए गए सुरक्षा इंतजामों, उनके संरक्षण के साथ ही बाघ के भोजन के लिए किए गए प्रयास काफी सार्थक रहे। यहां घास के मैदानों की संख्या बढ़ाई गई। जहां शाकाहारी वन्यप्राणी रह सके, जो बाघ के भोजन के लिए उपयुक्त होते हैं। वे शिकार कर वन्यप्राणियों को अपना निवाला बनाते हैं। कान्हा पार्क में भी बाघ के अनुकूल परिस्थितियां मिलने से बाघों की संख्या यहां बढ़ी है। जिसके चलते कान्हा में टाइगरों की संख्या 105 हो गई है। कान्हा में टाइगरों की संख्या बढऩे का योगदान प्रदेश को टाइगर स्टेट के दर्जे से नवाजा गया था।
इन बाघों की अटखेलियां देश भर में वायरल
कान्हा नेशनल पार्क में आने वाले पर्यटक, सैलानी बाघों के दीदार की उम्मीद लेकर पहुंचते है। यदि ये बाघ अगर सफारी के दौरान कुछ अलग अंदाज में दिख जाए तो पर्यटकों को कान्हा पार्क आने का मकशद ही पूरा हो जाता है। कान्हा नेशनल पार्क में बाघों की अटखेलियां काफी प्रसिद्ध है। जिसके कारण यहां पर्यटक एक, दो, तीन बार नहीं बारबार आने का मन बनाते है। कान्हा नेशनल पार्क में प्रसिद्ध बाघों में डीजे नाम की बाघिन, नीलम बाघिन काफी प्रसिद्ध हो गई है। वहीं पार्क में नैना बाघिन का भी एक अलग अंदाज पर्यटकों को लुभाता है। वहीं मोहनी नाम की बाघिन भी पर्यटकों के बीच अकर्षण का केन्द्र रहती है। इन्हीं बाघिनों के शावक भी किसी से कम नहीं है। ये शावक बाघिन के साथ अटखेलियां करते हुए पार्क में आने वाले सैलानियों को मंत्रमुग्ध करते है।
02 लाख 41 हजार 329 पर्यटकों ने किया पर्यटन
बताया गया कि बाघों की धरती के लिए प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क विश्व विख्यात है। यहां आने वाले देशी, विदेशी पर्यटक बाघों के दीदार के लिए ही आते है। यहां बाघों के दीदार से पर्यटक कान्हा पार्क दोबारा आने की चाह रखते है। विगत वर्ष जहां कान्हा नेशनल पार्क में करीब देशी, विदेशी पर्यटक मिलाकर 2 लाख 25 हजार 783 पर्यटकों ने पर्यटन किया है। वहीं इस वर्ष पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। इस वर्ष कान्हा टाइगर रिजर्व में 02 लाख 41 हजार 329 पर्यटकों ने पार्क के बफर और कोर जोन में कान्हा की सफारी का लुफ्त उठाया है। जिसमें कोर जोन में 1 लाख 95 हजार 877 और बफर जोन में 45 हजार 452 पर्यटकों ने सफारी की है।
तीन शावकों के अनाथ होने पर शुरू किया सेंटर
रिवाइल्डिंग सेंटर वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ संदीप अग्रवाल की देखरेख में संचालित किया जा रहा है। डॉ अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 2005 में पहली बार प्राकृतिक रूप से शावकों के संरक्षण करने की शुरुआत की गई थी। वर्ष 2005 में 20-22 दिन के तीन बाघ शावक की मां की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उन्हें कान्हा में फीडिंग कराई गई। कुछ दिन बाद एक बाड़े में रखकर देखरेख शुरू की गई। शुरुआत में जिंदा मुर्गा बाघ शावकों के लिए बाड़े में छोड़ा गया। जिसका उन्होंने ने शिकार किया। फिर जिंदा बकरा और चीतल छोड़ा जाने लगा। लगभग तीन साल में शावक पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से शिकार करने के लिए तैयार हो गए। शावक के वयस्क होने पर दो फीमेल शावक को पन्ना टाइगर रिजर्व भेज दिया गया। वहीं एक मेल शावक को भोपाल वन विहार भेज दिया गया। इन शावकों के सुरक्षित देखरेख हो जाने के बाद रिवाइल्डिंग सेंटर तैयार करने की योजना बनी। अब तक इस सेंटर में 12 शावक वयस्क होने के बाद जंगल में जीवन यापन कर रहे हैं।
चार शावक की हो रही देखरेख
रिवाइल्डिंग सेंटर घोरेला में वर्तमान में चार शावकों की पालन पोषण किया जा रहा है। डॉ संदीप अग्रवाल ने बताया कि चार शावकों में दो शावक वयस्क है। वहीं दो शावक पिछले माह लाए गए हैं। जिसमें एक की उम्र 26-28 एवं एक की 22 माह की है। सामान्य तौर पर ढाई से तीन साल में बाघ शावक वयस्क हो हो जाते हैं। जो प्राकृतिक रूप से शिकार करने में सक्षम रहते हैं। यहां वयस्क होने के साथ उनके शिकार करने पर भी नजर रखी जाती है। डॉ अग्रवाल ने बताया कि जब एक वयस्क शावक 60 चीतल का स्वयं ही शिकार कर लेता है तो समझा जाता है कि वह जंगल में रहने लायक हो गया है। फिर उसे डिमांड के अनुसार टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया जाता है। टाइगर रिजर्व में फीमेल टाइगर की अधिक मांग रहती है। ताकि जनसंख्या वृद्धि में सहायक हो सकें। इससे बाघ चिडिय़ा घर में कैद होने से बच जाते हैं। बताया गया कि घोरेला में दो बाड़ा बनाए गए हैं। जिसमें वयस्क बाघ को अलग रखा गया है। वहीं शावकों को अलग रखा गया है। यहां वे प्राकृतिक रूप से विचरण कर शिकार करते हैं। उनकी गतिविधियों पर अधिकारी निगरानी करते हैं।।