दलाल और भ्रष्ट कर्मचारी की जुगलबंदी के कारण भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी चरम सीमा पर है दलालों का मकड़जाल में आम- आदमी फंस कर सुविधा शुल्क देने को मजबूर
सिवनी
जिले की तहसील में यह कहावत
कोई नृप होय हमे क्या हानि… उन बाबुओ पर लागू होती है जो सालों से एक ही जगह पर अंगद के पांव की तरह न केवल जमे हुए हैं बल्कि अपनी कार्यशैली से सरकार व प्रशासन को बट्टा लगाने में लगे हुए है।
सरकार हमेशा से यही चाहती है कि आम आदमी को सरकारी काम खास कर जमीन संबंधी जैसे त्रुटि सुधार, खसरा – खतौनी की नकल, नक्शा की कॉपी, भू अधिकार, पुस्तिका, बंटवारा, सीमांकन, बटांकन, नामांतरण और डायवर्सन जैसे कई मामलों में भटकना न पड़े और आम आदमी के काम आसानी से पूर्ण हो जाए पर सिवनी तहसील में अनुविभाग स्तर के दफ्तर बाबुओ ओर दलालो के मकड़जाल में फंस कद आम आदमी अपना किसी भी प्रकार का काम बिना रुपए चढ़ाई नहीं करापाता है सुविधा शुल्क की चढ़ोत्तरी करते ही वही काम आसानी से हो जाता है।
तहसील कार्यालय में व उसके आसपास दलालो ने अपना अड्डा बना रखा है । जो उनकी ओर से पैसो का लेनदेन कर हर तरह के काम कर रहे हैं यह दलाल और बिचौलियों के इशारे पर हर अनैतिक कार्य को बखूबी अंजाम दिया जा रहा है यदि हम कानून की बात करें तो कार्य कानून के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है लेकिन यहां सब कुछ पैसों की माया में होता है दलाल और बिचौलियों के माध्यम से सुगमता से हर काम को अंजाम दिया जाता है इन तहसीलों में लंबे वक्त से जमे बाबू जिनके रहते कोई काम आसानी से नहीं होता है और उन बाबू को कोई फर्क नहीं पड़ता है इन बाबुओ का कुछ नहीं कर पाते है ।
सुविधा शुल्क फिक्स है हर काम की
आम व्यक्ति तहसील कार्यालय से जुड़े कार्यों के लिए दर-दर भटकना पड़ता है इन कार्यालय से जुड़े कार्य आसानी से नहीं होते। यदि आम व्यक्ति को तहसील से जुड़े काम जैसे की त्रुटि सुधार, खसरा-खतौनी की नकल, नक्शा की कॉपी, भू-अधिकार पुस्तिका, बटांकन, बटवारा, सीमांकन, नामांतरण और डायवर्सन के लिए सरकारी फीस देनी पड़ती है। सरकारी फीस देने के बाद भी आम आदमी को दर-दर की ठोकर खानी पड़ती है। सरकारी फीस के अलावा सुविधा शुल्क की राशि भी तय कर रखी है दलालों ने , जो लोग सुविधा शुल्क दे देते हैं उनके काम आसानी से हो जाते हैं लेकिन वही जो व्यक्ति सुविधा शुल्क नहीं देता उनके कामों को दरकिनार कर दिया जाता है। उनके काम महीना तक नहीं किए जाते हैं इतना ही नहीं सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हो या निजी जमीन का विवाद सभी केसों को जरूर से ज्यादा लंबित रखा जाता था कि पीड़ित पक्ष मजबूरन सुविधा शुल्क देने के लिए मजबूर हो जाए। फिर भी यदि सुविधा शुल्क नहीं मिलता है, तो उन कामों को लंबित रखा जाता है ।