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सिवनी
स्मार्ट मीटर के नाम पर लूट, ग्रामीण जनता बिजली बिलों से त्रस्त, आंदोलन की चेतावनी
स्मार्ट मीटर के नाम पर लूट! ग्रामीण जनता बिजली बिलों से त्रस्त, आंदोलन की चेतावनी
सिवनी/काँहीवाड़ा
काँहीवाड़ा विधुत वितरण केंद्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम काँहीवाड़ा, छुई, उमरिया, चुटका, कटिया, कामता सहित दर्जनों ग्रामीण इलाकों में स्मार्ट मीटर लगने के बाद उपभोक्ताओं पर बिजली बिल का ऐसा बोझ पड़ा है, जिसने उनकी आर्थिक कमर तोड़कर रख दी है। ग्रामीणों में बढ़ता गुस्सा अब उबाल पर है, और जन आंदोलन की चेतावनी दी जा चुकी है।

“बिजली बिल के नाम पर अब आम जनता का खून चूसा जा रहा है,” — यह कहना है उन ग्रामीणों का, जो पहले ₹300–₹500 तक का बिल भरते थे, और अब ₹1500 से ₹2500 तक के बिल से हैरान-परेशान हैं।
स्मार्ट मीटर: पारदर्शिता का वादा, परेशानी की सच्चाई
सरकार द्वारा प्रचारित किया गया कि स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं को सटीक और पारदर्शी बिलिंग देंगे, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट है। बिजली की खपत में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं होने के बावजूद ग्रामीणों के बिल कई गुना तक बढ़ गए हैं।
- बिल नहीं चुकाया, तो कनेक्शन काट — फिर वसूला गया जुर्माना
ग्रामीणों का कहना है कि समय पर बिल जमा न कर पाने पर विद्युत विभाग बिना किसी नोटिस या सूचना के कनेक्शन काट देता है। और जब उपभोक्ता कनेक्शन दोबारा जोड़वाने जाते हैं, तो उनसे अतिरिक्त चार्ज लिया जाता है। यह वसूली ग्रामीणों के अनुसार अनुचित और अन्यायपूर्ण है।
ग्रामीणों का आक्रोश: “अब और नहीं सहेंगे!”
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर यह अत्याचार नहीं रुका तो वे मजबूर होकर सड़कों पर उतरेंगे।
“हम मजदूरी करके अपने घर चलाते हैं, ऐसे में यह भारी-भरकम बिजली बिल हमारी रोज़ी-रोटी छीन रहा है। अगर जल्दी कोई समाधान नहीं निकाला गया, तो हम चुप नहीं बैठेंगे।” – एक ग्रामीण ने नाराजगी जताते हुए कहा।
ग्राम प्रतिनिधियों ने भी जताई गहरी नाराजगी
इस मुद्दे पर ग्राम पंचायत काँहीवाड़ा के प्रतिनिधियों ने भी सख्त रुख अपनाया है।
पूर्व जिला अध्यक्ष (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी) गया प्रसाद कुमरे, काँहीवाड़ा उपसरपंच अब्दुल माजिद शहज़ादे, पंच सचेद्र उइके, और रोहित वरसेकर सहित आस पास की ग्राम पंचायतो के सरपंच सहित ग्रामवासियों ने भी एक सुर में कहा कि:
“यह स्मार्ट मीटर नहीं, स्मार्ट लूट है। गरीबों का खून चूसा जा रहा है। आने वाले दिनों में यह आक्रोश एक विशाल जन आंदोलन में तब्दील होगा और इसकी जिम्मेदारी शासन व प्रशासन की होगी।”
कान्हीवाड़ा से आगा खान की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश
छपारा में शिक्षा का मजाक, बिना मान्यता के चल रहा स्कूल, 300 बच्चों का भविष्य खतरे में
छपारा के मुख्यालय में शिक्षा का मजाक
बिना मान्यता के चल रहा ‘मां शारदा शिशु संस्कार विद्यालय’, सैकड़ों बच्चों का भविष्य संकट में
सिवनी / छपारा
जिले के छपारा में नगर के महावीर वार्ड अंतर्गत शीशगर वार्ड में स्थित ‘मां शारदा शिशु संस्कार विद्यालय’ बीते तीन महीनों से बिना किसी वैधानिक मान्यता के संचालित हो रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम की खुलेआम अवहेलना करते हुए यह विद्यालय 300 से अधिक बच्चों को शिक्षा देने का दावा कर रहा है, जबकि जिला शिक्षा केंद्र और बीआरसी कार्यालय की रिपोर्ट में विद्यालय को आवश्यक शैक्षणिक मानकों पर खरा नहीं पाया गया है।

तीन माह से विभाग बना मूकदर्शक
विद्यालय द्वारा सत्र 2025-26 के लिए नवीन मान्यता हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया था, परंतु निरीक्षण उपरांत बीआरसी कार्यालय छपारा ने विद्यालय को 14 बिंदुओं पर मान्यता नहीं देने की अनुशंसा जिला शिक्षा केंद्र को भेजी थी। इसके बाद परियोजना समन्वयक, जिला शिक्षा केंद्र द्वारा भी विद्यालय को मान्यता देने से स्पष्ट इनकार कर दिया गया। इसके बावजूद विद्यालय का संचालन धड़ल्ले से जारी है और जिम्मेदार अधिकारी तमाशबीन बने हुए हैं।
शिक्षा अधिनियम का खुला उल्लंघन
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 18 और उसके अधीन बने नियम 2011 की धारा 11(4) में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि यदि किसी विद्यालय में आवश्यक शैक्षणिक व भौतिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं तो उसे मान्यता नहीं दी जा सकती। बावजूद इसके, ‘मां शारदा शिशु संस्कार विद्यालय’ प्रबंधन द्वारा बिना मान्यता के शिक्षा सत्र का संचालन किया जा रहा है, जिससे बच्चों के भविष्य पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
विभागीय आदेशों की भी अनदेखी
जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा 17 जून 2025 को जारी आदेश (क्रमांक 388/मान्यता/2025) में यह निर्देशित किया गया था कि जिन विद्यालयों को मान्यता प्राप्त नहीं हुई है, वे अपने अध्ययनरत छात्रों की टीसी (स्थानांतरण प्रमाण पत्र) और दाखिल खारिज रजिस्टर नजदीकी संकुल केंद्र में जमा करें। लेकिन संबंधित विद्यालय ने इस आदेश की भी अवहेलना की और न सिर्फ टीसी जमा नहीं कराई, बल्कि अवैधानिक रूप से कक्षाएं भी चालू रखीं। इस लापरवाही का सीधा असर बच्चों की भविष्य की पढ़ाई और प्रवेश प्रक्रिया पर पड़ सकता है।
क्या प्रशासन की मिलीभगत से हो रहा संचालन?
सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह पूरा मामला छपारा जनपद मुख्यालय का है, जहां शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की सीधी निगरानी होती है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बिना मान्यता के चल रहे इस विद्यालय को किसी प्रकार का विभागीय संरक्षण प्राप्त है? या फिर प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही बच्चों के भविष्य के साथ जानबूझकर खिलवाड़ कर रही है?
स्थिति
-*- बिना मान्यता के तीन महीने से संचालित विद्यालय
-*- बीआरसी द्वारा 14 बिंदुओं पर दी गई आपत्ति
-*- जिला शिक्षा केंद्र द्वारा मान्यता अस्वीकृत
-*- विभागीय नोटिस के बाद भी जारी कक्षाएं
-*- 300 से अधिक छात्रों का भविष्य अंधकार की ओर
स्थानीय अभिभावकों में रोष
बच्चों के अभिभावकों और स्थानीय समाजसेवियों में इस मामले को लेकर भारी नाराजगी है। वे मांग कर रहे हैं कि संबंधित विद्यालय को तत्काल बंद किया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो। साथ ही बच्चों को निकटवर्ती मान्यता प्राप्त विद्यालयों में प्रवेश दिलाया जाए ताकि उनका शैक्षणिक सत्र बर्बाद न हो।