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नगर में बढ़ती गुंडागर्दी : कांग्रेस नेता राजा बघेल के साथ नाबालिग लड़कों ने की अभद्रता, पुलिस ने दबोचा
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सिवनी का कलबोड़ी बना जुए का गढ़: नेताओं की शह, पुलिस की चुप्पी, और लाखों की नाल पर फड़ का खेल
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सिवनी:वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण, प्रशासन पर उठे सवाल
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सिवनी : आईपीएल सट्टा में 2.44 करोड़ रुपए की सट्टेबाजी का भंडाफोड़, मास्टरमाइंड अंकुश कुशवाह सहित दुर्गेश पुलिस गिरफ्त में
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सिवनी

सिवनी : तबादला आदेश के बाद भी कुर्सी से चिपके कर्मचारी,भ्रष्ट तंत्र का खेल जारी
सिवनी : तबादला आदेश के बाद भी कुर्सी से चिपके कर्मचारी,भ्रष्ट तंत्र का खेल जारी

विभागीय तबादले के बावजूद अधिकारी नहीं दे रहे रिलीफ

नेताओं की सिफारिशों पर अड़े अफसर, पुराने सेटलमेंट का दौर जारी

जनता त्रस्त, प्रशासन मौन, नेता तमाशबीन

सिवनी

सिवनी जिले में प्रशासनिक तबादलों के आदेश महज कागजों में सीमित होकर रह गए हैं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा हाल ही में किए गए विभागीय स्थानांतरण के बाद भी सिवनी जिले के कई कर्मचारी अपने पुराने पदस्थापना स्थल पर जमे हुए हैं। प्रशासनिक लचरता और राजनीतिक संरक्षण का ऐसा उदाहरण दुर्लभ ही देखने को मिलता है।

तबादले के बाद भी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं

कलेक्टर कार्यालय सिवनी से दिनांक 15 जून 2025 को स्थानांतरण आदेश जारी हुआ, मगर उसके बावजूद संबंधित अधिकारी-कर्मचारी आज तक कार्यमुक्त नहीं किए जा सके हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर इन कर्मचारियों को रिलीव करने में अधिकारी क्यों हिचक रहे हैं? इसका जवाब जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है।

सेटलमेंट का चल रहा खेल

विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक तबादले के बावजूद इन कर्मचारियों द्वारा पुराने कार्यकाल के मामलों का सेटलमेंट किया जा रहा है। विभागीय फाइलों में पुराने हिसाब-किताब निपटाए जा रहे हैं। जिस प्रशासनिक सतर्कता की बात सरकार करती है, वह सिवनी में नजर नहीं आती।

नेताओं का संरक्षण, अफसरों की मेहरबानी

सिवनी जिले के कई रसूखदार नेता इन कर्मचारियों को बचाने में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। कहीं विधायक तो, कहीं प्रभावशाली लोग भोपाल तक दौड़ लगा रहे हैं। अफसरों पर दबाव बनाया जा रहा है कि चहेते कर्मचारियों को जल्दबाजी में कार्यमुक्त न किया जाए। यही वजह है कि तबादला आदेश के बाद भी “कुर्सी मोह” खत्म नहीं हो रहा।

दागदार कर्मचारियों का बोलबाला

जिन कर्मचारियों का तबादला हुआ है, उन पर पहले से ही जनता को परेशान करने, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। कई बार ये अखबारों की सुर्खियों में भी रहे हैं। इसके बावजूद ये आराम से पुराने पदों पर विराजमान हैं और जनता इनके कुर्सी प्रेम से त्रस्त है।

प्रशासनिक विफलता पर उठते सवाल

सवाल है कि क्या जिला प्रशासन खुद भी इन रसूखदारों के दबाव में है? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति महज भाषणों तक सीमित है? अगर सख्ती नहीं हुई तो आने वाले समय में यह पूरी व्यवस्था पर बड़ा सवाल बनकर खड़ा हो सकता है।

सिवनी में दागी अधिकारी व कर्मचारी बेखौफ

सिवनी जिले का हाल यह है कि यहां दागी अधिकारी व कर्मचारी बेखौफ नौकरी करते रहते हैं और नेता अपनी नेतागिरी चमकाने में लगे रहते हैं। यदि समय रहते इन मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो यह पूरे प्रदेश के प्रशासनिक ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े करेगा ।।

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सिवनी:वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण, प्रशासन पर उठे सवाल
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मध्य प्रदेश

सिवनी:वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण, प्रशासन पर उठे सवाल
सिवनी:वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण, प्रशासन पर उठे सवाल

लाखों रुपये लेकर की गई शासकीय भूमि की नामांतरण की गड़बड़ी, वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण

सिवनी

मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड की शासकीय भूमि को निजी कालोनी के प्लॉट के रूप में नामांतरण कर दिया गया। यह मामला सिवनी के ज्यारत नाका SBI कॉलोनी की भूमि खसरा नंबर 98/1 से जुड़ा हुआ है।

जानकारी के अनुसार, इस जमीन का नामांतरण स्टेट बैंक कॉलोनी के प्लॉट के रूप में कर दिया गया। इस जमीन पर कालोनी प्लॉट कर्ता अरुण श्रीवास्तव द्वारा प्लॉट काटे गए थे, जिसकी कीमत लगभग 2400 रुपए प्रति वर्गफीट बताई जाती है। उल्लेखनीय है कि उक्त भूमि का नामांतरण पिछले 15 वर्षों से नहीं हुआ था, क्योंकि यह शासकीय भूमि थी।

03.01.11 को अरुण श्रीवास्तव के खिलाफ एक वाद न्यायालय में दर्ज किया गया था। इसके बाद 19.02.2015 को न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि विवादित भूमि 0.12 हेक्टेयर राज्य की भूमि है। हाई कोर्ट में इस पर SA 687/2015 क्रमांक से मामला दायर किया गया, जिसकी सुनवाई अभी जारी है।

इसके बावजूद, बिना न्यायालय के अंतिम निर्णय के 2023-24 में उक्त भूमि का नामांतरण कर दिया गया और प्लॉट बेच दिए गए। दस्तावेज़ों के अनुसार, नामांतरण आदेश क्रमांक 3245/31-6/2023-24 दिनांक 08/2/24 के माध्यम से यह कार्य हुआ।

सबसे गंभीर बात यह है कि बिना वन विभाग की अनुमति और हाई कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना, नामांतरण को लागू कर दिया गया, जिससे शासकीय भूमि को निजी हाथों में बेचे जाने का रास्ता साफ हुआ।

इस पूरे मामले में प्रशासन और वन विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या बिना अनुमति के सरकारी भूमि का नामांतरण करना वैध है? अब यह देखना होगा कि जिला प्रशासन और वन विभाग इस गंभीर मामले में क्या कार्रवाई करते हैं।।

आगामी खबर पर जल्द होंगे खुलासे….

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