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सिवनी

सिवनी:वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण, प्रशासन पर उठे सवाल
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लाखों रुपये लेकर की गई शासकीय भूमि की नामांतरण की गड़बड़ी, वन निगम की जमीन का हुआ गलत नामांतरण

सिवनी

मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड की शासकीय भूमि को निजी कालोनी के प्लॉट के रूप में नामांतरण कर दिया गया। यह मामला सिवनी के ज्यारत नाका SBI कॉलोनी की भूमि खसरा नंबर 98/1 से जुड़ा हुआ है।

जानकारी के अनुसार, इस जमीन का नामांतरण स्टेट बैंक कॉलोनी के प्लॉट के रूप में कर दिया गया। इस जमीन पर कालोनी प्लॉट कर्ता अरुण श्रीवास्तव द्वारा प्लॉट काटे गए थे, जिसकी कीमत लगभग 2400 रुपए प्रति वर्गफीट बताई जाती है। उल्लेखनीय है कि उक्त भूमि का नामांतरण पिछले 15 वर्षों से नहीं हुआ था, क्योंकि यह शासकीय भूमि थी।

03.01.11 को अरुण श्रीवास्तव के खिलाफ एक वाद न्यायालय में दर्ज किया गया था। इसके बाद 19.02.2015 को न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि विवादित भूमि 0.12 हेक्टेयर राज्य की भूमि है। हाई कोर्ट में इस पर SA 687/2015 क्रमांक से मामला दायर किया गया, जिसकी सुनवाई अभी जारी है।

इसके बावजूद, बिना न्यायालय के अंतिम निर्णय के 2023-24 में उक्त भूमि का नामांतरण कर दिया गया और प्लॉट बेच दिए गए। दस्तावेज़ों के अनुसार, नामांतरण आदेश क्रमांक 3245/31-6/2023-24 दिनांक 08/2/24 के माध्यम से यह कार्य हुआ।

सबसे गंभीर बात यह है कि बिना वन विभाग की अनुमति और हाई कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना, नामांतरण को लागू कर दिया गया, जिससे शासकीय भूमि को निजी हाथों में बेचे जाने का रास्ता साफ हुआ।

इस पूरे मामले में प्रशासन और वन विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या बिना अनुमति के सरकारी भूमि का नामांतरण करना वैध है? अब यह देखना होगा कि जिला प्रशासन और वन विभाग इस गंभीर मामले में क्या कार्रवाई करते हैं।।

आगामी खबर पर जल्द होंगे खुलासे….

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मध्य प्रदेश

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सिवनी

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जानकारी के अनुसार, इस जमीन का नामांतरण स्टेट बैंक कॉलोनी के प्लॉट के रूप में कर दिया गया। इस जमीन पर कालोनी प्लॉट कर्ता अरुण श्रीवास्तव द्वारा प्लॉट काटे गए थे, जिसकी कीमत लगभग 2400 रुपए प्रति वर्गफीट बताई जाती है। उल्लेखनीय है कि उक्त भूमि का नामांतरण पिछले 15 वर्षों से नहीं हुआ था, क्योंकि यह शासकीय भूमि थी।

03.01.11 को अरुण श्रीवास्तव के खिलाफ एक वाद न्यायालय में दर्ज किया गया था। इसके बाद 19.02.2015 को न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि विवादित भूमि 0.12 हेक्टेयर राज्य की भूमि है। हाई कोर्ट में इस पर SA 687/2015 क्रमांक से मामला दायर किया गया, जिसकी सुनवाई अभी जारी है।

इसके बावजूद, बिना न्यायालय के अंतिम निर्णय के 2023-24 में उक्त भूमि का नामांतरण कर दिया गया और प्लॉट बेच दिए गए। दस्तावेज़ों के अनुसार, नामांतरण आदेश क्रमांक 3245/31-6/2023-24 दिनांक 08/2/24 के माध्यम से यह कार्य हुआ।

सबसे गंभीर बात यह है कि बिना वन विभाग की अनुमति और हाई कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना, नामांतरण को लागू कर दिया गया, जिससे शासकीय भूमि को निजी हाथों में बेचे जाने का रास्ता साफ हुआ।

इस पूरे मामले में प्रशासन और वन विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या बिना अनुमति के सरकारी भूमि का नामांतरण करना वैध है? अब यह देखना होगा कि जिला प्रशासन और वन विभाग इस गंभीर मामले में क्या कार्रवाई करते हैं।।

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