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छपारा में शिक्षा का मजाक, बिना मान्यता के चल रहा स्कूल, 300 बच्चों का भविष्य खतरे में
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जिला कार्यालय के आदेश को ठेंगा दिखा रहे प्राइवेट स्कूल संचालक, जिम्मेदार अधिकारी गोलमोल जवाबों में उलझे”
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सिवनी

तबादला आदेश हवा-हवाई, रतन शाह उईके पर न कलेक्टर का चला, न शासन का आदेश
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15 वर्षों से सिवनी में जमे राजस्व निरीक्षक रतन शाह उईके पर न प्रशासन का जोर, न राजनीतिक दखल का असर

स्थानांतरण आदेश के बावजूद नहीं हो सकी कार्यमुक्ति, सिवनी से कुरई हुआ तबादला फिर भी बने हुए हैं पद पर काबिज


सिवनी

जिले में एक बार फिर से प्रशासनिक प्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं, जहां राजस्व निरीक्षक रतन शाह उईके का 17 जून 2025 को सिवनी से कुरई स्थानांतरण आदेश जारी हुआ, लेकिन हफ्तों बाद भी वे अपने मूल पद पर डटे हुए हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब उईके का तबादला हुआ हो और उसे अमल में नहीं लाया गया हो। 3 वर्ष पूर्व भी स्थानांतरण आदेश निर्गत हुआ था, लेकिन अधिकारियों की ‘मिलीभगत’ और ‘राजनीतिक पकड़’ के चलते वे यथावत बने रहे।

रतन शाह उईके पिछले 15 वर्षों से एक ही स्थान पर पदस्थ हैं, जो साफ तौर पर स्थानांतरण नीति और प्रशासनिक पारदर्शिता का मज़ाक उड़ाता है। क्षेत्र में लोग इन्हें ‘अंगद के पैर’ की संज्ञा दे रहे हैं, जिन्हें न सत्ता बदल सकी और न ही प्रशासनिक आदेश।

प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो कलेक्टर द्वारा स्थानांतरण सूची में इनका नाम शामिल किया गया था, लेकिन न तो संबंधित विभाग ने रिलीविंग आदेश जारी किया, न ही कोई स्पष्ट जवाब दिया जा रहा है कि आखिर उन्हें स्थानांतरित क्यों नहीं किया गया।

जनता के उठते सवाल:

      1.     क्या रतन शाह उईके पर कोई विशेष राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण है?

      2.      यदि स्थानांतरण अमल में लाना ही नहीं था, तो उसे प्रसारित क्यों किया गया?

      3.      स्थानांतरण नीति का पालन न करना क्या कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर सवाल नहीं उठाता?

इस मामले ने प्रशासनिक कार्यशैली, निष्पक्षता और राजनीतिक हस्तक्षेप पर गहरे प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। लोगों में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या वाकई कुछ अधिकारी ‘सबसे ऊपर’ होते हैं ।

यदि प्रशासन ऐसे मामलों में गंभीर नहीं हुआ, तो यह उदाहरण अन्य अधिकारियों के लिए भी अनुचित स्थायित्व का आधार बन सकता है, जिससे भ्रष्टाचार और जनहित की उपेक्षा को बल मिलेगा ।।

छपारा में शिक्षा का मजाक, बिना मान्यता के चल रहा स्कूल, 300 बच्चों का भविष्य खतरे में
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मध्य प्रदेश

छपारा में शिक्षा का मजाक, बिना मान्यता के चल रहा स्कूल, 300 बच्चों का भविष्य खतरे में
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छपारा के मुख्यालय में शिक्षा का मजाक
बिना मान्यता के चल रहा ‘मां शारदा शिशु संस्कार विद्यालय’, सैकड़ों बच्चों का भविष्य संकट में

सिवनी / छपारा

जिले के छपारा में नगर के महावीर वार्ड अंतर्गत शीशगर वार्ड में स्थित ‘मां शारदा शिशु संस्कार विद्यालय’ बीते तीन महीनों से बिना किसी वैधानिक मान्यता के संचालित हो रहा है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम की खुलेआम अवहेलना करते हुए यह विद्यालय 300 से अधिक बच्चों को शिक्षा देने का दावा कर रहा है, जबकि जिला शिक्षा केंद्र और बीआरसी कार्यालय की रिपोर्ट में विद्यालय को आवश्यक शैक्षणिक मानकों पर खरा नहीं पाया गया है।

तीन माह से विभाग बना मूकदर्शक

विद्यालय द्वारा सत्र 2025-26 के लिए नवीन मान्यता हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया था, परंतु निरीक्षण उपरांत बीआरसी कार्यालय छपारा ने विद्यालय को 14 बिंदुओं पर मान्यता नहीं देने की अनुशंसा जिला शिक्षा केंद्र को भेजी थी। इसके बाद परियोजना समन्वयक, जिला शिक्षा केंद्र द्वारा भी विद्यालय को मान्यता देने से स्पष्ट इनकार कर दिया गया। इसके बावजूद विद्यालय का संचालन धड़ल्ले से जारी है और जिम्मेदार अधिकारी तमाशबीन बने हुए हैं।

शिक्षा अधिनियम का खुला उल्लंघन

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 18 और उसके अधीन बने नियम 2011 की धारा 11(4) में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि यदि किसी विद्यालय में आवश्यक शैक्षणिक व भौतिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं तो उसे मान्यता नहीं दी जा सकती। बावजूद इसके, ‘मां शारदा शिशु संस्कार विद्यालय’ प्रबंधन द्वारा बिना मान्यता के शिक्षा सत्र का संचालन किया जा रहा है, जिससे बच्चों के भविष्य पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।

विभागीय आदेशों की भी अनदेखी

जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा 17 जून 2025 को जारी आदेश (क्रमांक 388/मान्यता/2025) में यह निर्देशित किया गया था कि जिन विद्यालयों को मान्यता प्राप्त नहीं हुई है, वे अपने अध्ययनरत छात्रों की टीसी (स्थानांतरण प्रमाण पत्र) और दाखिल खारिज रजिस्टर नजदीकी संकुल केंद्र में जमा करें। लेकिन संबंधित विद्यालय ने इस आदेश की भी अवहेलना की और न सिर्फ टीसी जमा नहीं कराई, बल्कि अवैधानिक रूप से कक्षाएं भी चालू रखीं। इस लापरवाही का सीधा असर बच्चों की भविष्य की पढ़ाई और प्रवेश प्रक्रिया पर पड़ सकता है।

क्या प्रशासन की मिलीभगत से हो रहा संचालन?

सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह पूरा मामला छपारा जनपद मुख्यालय का है, जहां शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की सीधी निगरानी होती है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बिना मान्यता के चल रहे इस विद्यालय को किसी प्रकार का विभागीय संरक्षण प्राप्त है? या फिर प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही बच्चों के भविष्य के साथ जानबूझकर खिलवाड़ कर रही है?

स्थिति

     -*-  बिना मान्यता के तीन महीने से संचालित विद्यालय

     -*- बीआरसी द्वारा 14 बिंदुओं पर दी गई आपत्ति

     -*- जिला शिक्षा केंद्र द्वारा मान्यता अस्वीकृत

     -*- विभागीय नोटिस के बाद भी जारी कक्षाएं

    -*- 300 से अधिक छात्रों का भविष्य अंधकार की ओर

स्थानीय अभिभावकों में रोष

बच्चों के अभिभावकों और स्थानीय समाजसेवियों में इस मामले को लेकर भारी नाराजगी है। वे मांग कर रहे हैं कि संबंधित विद्यालय को तत्काल बंद किया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो। साथ ही बच्चों को निकटवर्ती मान्यता प्राप्त विद्यालयों में प्रवेश दिलाया जाए ताकि उनका शैक्षणिक सत्र बर्बाद न हो।

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