पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दावे के साथ कहा था कि प्रदेश की सड़कें तो अमेरिका की सड़कों से भी बेहतर हैं,तो फिर हम आपको सागर जिले के टपरा गांव की कहानी दिखा रहे है, जहां आजादी के सात दशक बाद भी आज तक सड़क नहीं बन पाई।
सागर

भारत के नक्शे में एक बिंदु के बराबर भी नहीं है सागर जिले के बंडा विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत कलराहों का टपरा गांव। जहां बड़ी-बड़ी योजनाएं इन छोटे से बिंदु जैसे गांव तक पहुंच नहीं पाती। टपरा गांव में आजादी के बाद सड़क तक नहीं बन पाई। फिर विकास के अन्य काम तो दूर की बात है। खास बात तो ये है कि सागर एक तरह से भाजपा का गढ़ बना हुआ है।इसके बावजूद इस गांव का विकास न हो पाना अपने आप में सरकार के कामों पर सवाल खड़े करता है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव के विकास की बानगी 300 की आबादी वाला टपरा गांव स्टेट हाइवे से 2 से 3 किलोमीटर दूरी पर बसा है, जहां मेन रोड से एक किलोमीटर पक्की सड़क तक नहीं बन पाई। गांव में न पक्के मकान हैं और न कोई अन्य सुविधा। आलम ये है कि यह गांव विकास के मायने में दशकों पिछड़ा है। अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे इलाज के लिए खाट पर ले जाना पड़ता है। गांव से बाहर जाने के लिए स्थानीय लोग कई बार सोचते हैं कि आखिर बाहर कैसे निकलें।
पक्के मकान तक नहीं वही स्थानीय लोग बताते हैं कि आज तक विकास शहरों से निकलकर हमारे गांव तक नहीं पहुंचा।गांव की सड़कों के लिए ग्रामीणों ने कई लड़ाइयां लड़ी, सरपंच , सचिव,,विधायक, सांसद और मंत्री से लेकर तमाम जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से गुहार लगाई। आश्वासन तो खूब मिले, लेकिन सड़क नहीं बनी।गांव की महिला ने बताया की लाड़ली बहना योजनाएं भी दम तोड़ती नजर आ रही हैं। गांव में 100 से अधिक लाड़ली बहने हैं लेकिन योजना का लाभ नहीं मिला,आलम ये है कि कुछ ग्रामवासी मिट्टी की दरकती दीवारों के बीच रहने को मजबूर हैं। जहां कभी भी हादसा हो सकता है।

सड़क नहीं पगडंडी है टपरा गांव में एक ही मुख्य सड़क है, जो कीचड़ से सनी पगडंडी में बदल चुकी है। इस पगडंडी के सहारे ही गांववाले निकलते हैं। गांव में रहने वाले 28 वर्षीय नन्हे आदिवासी कहते हैं कि जब से पैदा हुए हैं, तब से लेकर आज तक गांव में सड़क की समस्या देख रहे हैं। पूरी जिंदगी गांव में बिता चुकी 75 साल की बुजुर्ग महिला देशराजरानी बताती है की अब तो सरकार से उम्मीद ही छूट गई है। गांव के ही 55 वर्षीय स्थानीय निवासी कहते हैं कि गांव की सड़क के लिए सांसद से लेकर विधायक तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई, रोड पर हमारे बच्चे गिरते उठते शहर तक पहुंच पाते हैं। 40 साल की ग्रामीण महिला बताती हैं कि कितने बड़े – बूढ़े गांव में सड़क बनने की आस में चल दिए। कई महिलाओं को अस्पताल ले जाते वक्त सड़क पर ही बच्चे पैदा हो गए। लगता नहीं कि अपने गांव में कभी सड़क देख पाएंगे ।।
बड़ा सवाल ये है कि जिस गांव में सड़क नही प्रशासनिक अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन चुनाव के वक्त बड़े-बड़े दावे करने वाले नेताओं के वादे सरकार बनने के बाद टपरा गांव तक आते-आते दम तोड़ देते है ।।